If the honorables do not listen to each other then how will the country run

Editorial: अगर माननीय एक-दूसरे की नहीं सुनेंगे तो देश कैसे चलेगा

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If the honorables do not listen to each other then how will the country run

If the honorables do not listen to each other then how will the country run लोकसभा में आजकल सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तकरार नए से नए लेवल पार करती जा रही है, वह बेहद चिंताजनक एवं शर्मनाक है। संसद जनता के हित में विचार-मंथन करने का स्थल है, लेकिन आजकल यह स्थान सत्ता दल और विपक्ष के बीच युद्ध का मैदान बन गई है। विपक्ष इस बात से उत्साहित है कि इस बार उसकी सीटें पहले की तुलना में कहीं बेहतर हैं और उसका दावा है कि जनता ने उसे ही सरकार बनाने का अवसर दिया है। हालांकि भाजपा नीत एनडीए ने एकजुटता के साथ इस चुनाव को लड़ा था और जो परिणाम सामने आए, उनमें भाजपा को पर्याप्त सीटें नहीं मिली, लेकिन सहयोगी दलों के साथ मिलकर उसने सरकार का गठन कर लिया। क्या ऐसे में सच में यह कहा जा सकता है कि सत्ता पक्ष को जनमत हासिल नहीं हुआ। यह कहना अतार्किक और अनुचित होगा।

हालांकि इन परिणामों की छाया में आजकल जिस प्रकार विपक्ष बेहद तीखे अंदाज में सत्ता पक्ष पर हमला कर रहा है, वह ताज्जुबकारी घटना है। विपक्ष का कार्य सरकार को सजग करना है और जनता की आवाज बनना है। हालांकि जिस प्रकार की घटनाएं सदन और उसके बाहर सामने आ रही हैं, उससे लग रहा है कि जैसे विपक्ष न तो सरकार को स्वीकार करने को तैयार है और न ही सदन का कार्य सुचारू रूप से संचालित होने देने की मंशा रखता है। यह भी कहा जा सकता है कि उसके तेवर प्रतिशोध पूर्ण हैं, जोकि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अस्वीकार्य हैं। भारत में सत्ता का हस्तांतरण हमेशा शांतिपूर्ण तरीके से होता आया है, लेकिन इस बार के चुनाव के बाद लग रहा है, जैसे देश कहीं अटक गया है। जैसे सहज स्वीकृति नहीं है, सभी की।

गौरतलब है कि बजट सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इसका आरोप लगाया था कि विपक्ष ने खुद उन्हें बोलने नहीं दिया। उनके आरोप में सच्चाई है, क्योंकि सदन में प्रधानमंत्री चाहे किसी भी दल के हों, जब भी बोलने के लिए खड़े होते हैं तो पूरा सदन उनकी बात सुनता है। लेकिन संभव है पहली बार हो रहा है कि प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान भी विपक्ष के सांसद शोर शराबा करते रहे और अनावश्यक टिप्पणी करते रहे। यह भी चिंताजनक है कि लोकसभा अध्यक्ष के संबंध में अत्यंत निम्न दर्जे की टिप्पणी की गई और अब तो लगता है, जैसे सम्मान जैसी बात रही ही नहीं है।

विपक्ष के सांसदों के वक्तव्य विषय केंद्रित नहीं होते और बजट पर बात करने की बजाय उन विषयों को उठा रहे हैं, जोकि विवाद का विषय बन रहे हैं। पंजाब में जालंधर से सांसद चरणजीत सिंह चन्नी एवं रेल व खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू के बीच तकरार एवं सदन के  वेल में आकर हाथापाई जैसी नौबत बेहद गंभीर मामला है। यह भी कितना दुखद है कि चन्नी की ओर से बिट्टू के दादा पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत बेअंत सिंह के बारे में अशोभनीय बात कही गई। इससे बात से कौन इनकार कर सकता है कि पंजाब में आतंकवाद की बलि चढ़े सभी लोग श्रद्धेय हैं, उनका अपमान नहीं किया जा सकता है। सरदार बेअंत सिंह ने पंजाब एवं अपने लोगों के लिए बलिदान दिया था और अब बिट्टू अगर कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आ गए हंै तो इसके लिए उनके दादा सरदार बेअंत सिंह के संबंध अपमानजनक बात कही जा रही है। बेशक, सांसद चन्नी को अपने शब्दों पर नियंत्रण रखना चाहिए। इसी बात की आजकल सदन में प्रमुखता से जरूरत है, क्योंकि विपक्ष के सांसद ऐसे बयानों से सामने आ रहे हैं, जिनमें उनका प्रतिशोध नजर आ रहा है। हालांकि ऐसी बातों के सामने आने के बाद सत्ता पक्ष की ओर से भी तीखी बातें कही जाती हैं, जिससे विवाद बढ़ जाता है।

यह कितना शर्मनाक है कि प्रधानमंत्री मोदी के संबंध में गाली गलौज जैसी बातों के भी आरोप लग रहे हैं। जिस सदन में गरिमापूर्ण माहौल में देश की तरक्की की बात होनी चाहिए अगर वहां सदस्यों का आचरण इस स्तर पर पहुंच जाएगा तो यह बेहद लज्जाजनक है। ऐसे में सडक़ और सदन के बीच क्या अंतर रह जाएगा। सदन बहस के लिए है, लेकिन आरोप लग रहे हैं कि विपक्षी सांसदों को सदन से बाहर कर दिया जाता है।

आखिर ऐसा किस प्रकार होता होगा। क्या इसे शरारतपूर्ण नहीं कहा जा सकता कि सांसद जानबूझ कर कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेना चाहते, ताकि यह संदेश जाए कि सरकार न सदन का संचालन करवा पाई और न ही देश का। वास्तव में देश की जनता यही सवाल पूछ रही है कि आखिर संसद क्या हंगामे के लिए ही रह गई है। सडक़ पर चलने वाला आम नागरिक पांच साल इसी तरह से  बीता देगा और उसके बाद फिर वोट देने के लिए लाइन में खड़ा मिलेगा। हालांकि देश वहीं का वहीं खड़ा नजर आएगा। जिनका भला होना होता है, उनका भला हो चुका होगा। दरअसल, देश के बेहतर संचालन के लिए समन्वय जरूरी है और इसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष को साथ आना होगा। 

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